Saturday, June 10, 2017

बारिश की पहली बूँद मुझसे जब टकराई,
पुछा कहाँ थी अब तक तुम क्यों इतना सबको तड़पायी.!
सुन ज़वाब उसकी हो गयी बोलती मेरी बंद,
मौसम परिवर्तन में थी हमारी ग़लतियों से सम्बंध..!!

हम सब तो समय से हैं आते,
अपनी भूमिका खूबसूरती से हैं निभाते.!
अहमियत प्रकृति की ना जाने तुम कब समझोगे,
खुद के साथ इस सृष्टि को भी तुम जल्द ही खो दोगे..!!

प्रदूषण तुम फैलाते हो,
वृक्ष को भी हटाते हो.!
सारे साधन खुद ही खत्म किये,
फिर हाय तौबा मचाते हो..!!

कुदरत की है ये माया,
कहीं है धूप तो कहीं है छाया.!
एक दूसरे पे सब है निर्भर,
पृथ्वी हो या हो अम्बर..!!

प्रकृति से अब ना खेलना,
वक़्त रहते इस बात को समझना.!
सम्पदा है ये सीमित,
सभी के लिये पर है निर्मित..!!

बात मेरी अब समझ है आई,
क्यों कुदरत हमसे है कतराई.!
सबको ये बात समझना होगा,
भविष्य के लिये हमें आज सँजोना होगा..!!©RRKS.!!