Tuesday, July 26, 2016

"सब मिलकर ही भारत कहलाते हैं"।

"सब मिलकर ही भारत कहलाते हैं"।

अमन, बचपन से ही ख़ुद को किसी शहर, गाँव या राज्य से ज़्यादा, ख़ुद को भारतीय कहलाना पसंद करता था। बचपन में वैसे भी किसी को क्या फ़र्क़ पड़ता है की वो किस शहर, गाँव या राज्य से है, बस माता-पिता का प्यार, भाई-बहन और दोस्तों का साथ ही मायने रखता है। हालाँकि माता-पिता, नाम के बाद पता या जगह से ही इंसान की पहचान होती है मगर जैसे-जैसे इंसान बड़ा होता है वैसे-वैसे इंसान को दुनिया और दुनियादारी समझ आने लगती है। अमन भी इन सब बातों को समझने लगा था। उसके कई दोस्त, शिक्षक-शिक्षिका दूसरे शहर और कई तो अलग-अलग राज्य से भी थे। उनके बीच जब कभी भी पढ़ाई या खेल के अलावा कोई बात होती थी तो सभी अपने-अपने जगह की विशेषता बताते और पूछते कि बड़ा होकर कौन क्या बनेगा। डॉक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर, वक़ील जवाब में यही सब होते थे। अमन लड़ाकू विमान चालक(फ़ाईटर पायलट) बनना चाहता था, देश-भक्ति का जज़्बा और रफ़्तार से प्यार, सबसे बड़ी वजह थी इस पसंद के पीछे। मगर अमन एन.डी.ए. की परीक्षा पास(उत्तीर्ण) न कर सका जिस में पास कर के ही वो फ़ाईटर पायलट बन सकता था।
फिर अमन अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए दूसरे राज्य गया, मगर वहाँ के कई लोग अपने राज्य को श्रेष्ठ बताते और अमन के राज्य और उसके राज्य के लोगों का मज़ाक़ उड़ाते। अमन जवाब में अपने राज्य की अहमियत और गुण उनको समझाता और साथ ही कई दूसरे राज्यों की विशेषता भी बताता, मगर वे लोग उसकी बात अनसुना कर देते। अमन इन सब बातों को सुनता, उनको जवाब भी देता मगर दुखी होता था ये सोचकर की अपने ही देश में उसे ये समझाना पड़ता है की सभी राज्य बराबर महत्व रखते हैं और "सब मिलकर ही भारत कहलाते हैं" इन सब के बाद तो अमन ख़ुद को भारतीय कहलाना ज़्यादा पसंद करने लगा, क्योंकि अमन के दिलोदिमाग़ में ये आ गया था कि अगर वो भी अपने राज्य को बेहतर बताने में लगा रहेगा तो किसी को कुछ हासिल तो होगा नहीं बल्कि एक दूसरे के प्रति नफ़रत ज़रूर बढ़ा देगा।
लिहाज़ा वो अपनी पढ़ाई पूरी कर एक कंप्यूटर कम्पनी में बतौर प्रबंधक(मैनेजर) काम करने लगा। एक बार अमन के पास भारतीय फ़ौज(इंडियन आर्मी) से कंप्यूटर की माँग आयी। अमन उनकी माँग समझने के लिए फ़ौज के उस युनिट(विभाग) में सुबह क़रीब 11 बजे पहुँच गया, जहाँ कंप्यूटर की ज़रूरत थी। अमन वहाँ पहले कर्नल वीर से मिला जिन्होंने अमन को बुलाया था फिर कर्नल वीर ने मेजर दीप और सूबेदार ओम को भी बुला लिया और फिर वे सब अमन से उसके कम्पनी और कम्पनी के उत्पाद(प्रोडक्ट) के बारे में समझें और अपनी ज़रूरत अमन को समझाने लगें। अमन उनकी ज़रूरत को समझ, उनके लिए अपनी कम्पनी की सबसे अच्छे प्रोडक्ट का डिमौन्स्ट्रेशन(प्रदर्शन) किया। जबकि डिमौन्स्ट्रेशन करना अमन का काम नहीं था। असल में अमन जितने भी अधिकारी से मिला सभी ने अमन को सम्मान भी दिया और अमन को वहाँ अपनापन भी मिला तो उसने ख़ुद ही डिमौन्स्ट्रेशन कर के दिखा दिया। सूबेदार ओम तो अमन को इज़्ज़त से सर बुला रहे थे। इन सब में क़रीब 2-3 घंटे बीत गये तब कर्नल वीर ने सूबेदार ओम को बुलाया और अमन के लिए दोपहर के खाने का बंदोबस्त करने को कहा। सूबेदार ओम, अमन के पास आयें और बोले- सर चलिए पहले भोजन कर लेते हैं। फिर अमन को सूबेदार ओम उनके कैंटीन ले गयें और वहाँ अमन ने देखा सब अपनी-अपनी थाली लिए ख़ुद खाना लेकर खा रहे थे जैसे बुफे पार्टी में होता है। सूबेदार ओम ने एक टेबल-कुर्सी की तरफ़ इशारा करते हुये अमन से कहा- सर आप यहाँ बैठो मैं अभी आता हूँ। अमन उस कुर्सी पे बैठ गया मगर उसने देखा कि सूबेदार ओम एक हवलदार से एक थाली लगाने को कहे और एक थाली वो ख़ुद लगाने लगे फिर दोनों थाली लेकर अमन की तरफ़ आने लगे। अमन को ये अटपटा लगा और वो उठ के सूबेदार ओम के पास जाकर उनसे एक थाली ली और कहा- आप लोग वैसे भी देश की बहुत सेवा करते हैं, मुझे मेरी थाली कम से कम ख़ुद लेने दीजिए। फिर कई और जवान भी अमन और सूबेदार ओम के पास आकर बैठ कर खाने लगे और आपस में बातें करने लगें। खाना खाकर अमन कर्नल वीर से मिला तो उन्होंने अमन को उसके कम्पनी के प्रोडक्ट को लगाने का आर्डर दे दिया। अमन दो दिन बाद एक इंजीनियर को साथ लेकर कंप्यूटर लगाने पहुँचा, हालाँकि आज अमन की ज़रूरत नहीं थी मगर कर्नल वीर और सूबेदार ओम चाहते थे कि अमन भी साथ रहे और शायद अमन का फ़ौज के प्रति बचपन से लगाव के कारण कंप्यूटर लगाते वक़्त वो इंजीनियर को लेकर पहुँच गया। जब कंप्यूटर लगाया जा रहा था तब वहाँ दो हवलदार, एक इंजीनियर, अमन, सूबेदार ओम और एक सूबेदार विवेक मौजूद थे तभी वहाँ एक और सूबेदार आलोक आयें और बोलें- ये सिविलयंस कंप्यूटर लगाने आयें है क्या? सूबेदार आलोक की बात सुन अमन को ऐसा लगा जैसे फिर से कोई अपने को श्रेष्ठ बताना और जताना चाह रहा हो। अमन सूबेदार आलोक की तरफ़ देखा पर बिना जवाब दिये अपने इंजीनियर को काम बताने लगा ही था कि सूबेदार ओम ने कहा- आलोक साहब जब आप भी फ़ौज से वापस जाओगे तब आप भी एक सिविलयन ही हो जाओगे। सूबेदार आलोक कुछ कहे बिना वहाँ से चले गयें मगर अमन सूबेदार ओम की तरफ़ देखा तो सूबेदार ओम ने कहा ऐसे लोग भूल जाते हैं कि वे तो फ़ौज में हैं पर उनके परिवार वाले तो सिविलयन ही है। सूबेदार ओम की बातें सुन अमन की आँखों में सूबेदार ओम के लिए गर्व और सम्मान था।
इन सब के एक साल बाद समाचार बना हुआ था कि फ़ौज अपनी शक्ति का ग़लत या अनुचित उपयोग कर रही है। कई बुद्धिजीवी तो ये तक कह रहे थे कि फ़ौज वाले सीमा रेखा पर बलात्कार करते हैं। ये सब सुन-पढ़ कर अमन को उन बुद्धिजीवियों से सवाल करने की इच्छा हुई जो शायद कभी सीमा के पास तक नहीं गये, किसी फ़ौजी से कभी मिले नहीं, जो शायद ये सब बोलकर किसी राजनीति का भाग बनना चाहते थे या राजनीति करना चाहते थे और इन सब बातों के समर्थकों से भी कि जब फ़ौज इतनी घटिया और क्रूर काम कर रही है तो देश की सीमा की रक्षा कौन कर रहा है? सीमा के पास रह रहे लोग किसके भरोसे चैन की नींद सोते है? सभी अपनी-अपनी राजनीति या फ़ायदे के लिए पूरे फ़ौज को कैसे ग़लत बोल सकते हैं? फ़ौज अगर कोई सख़्त क़दम लेती भी है तो किसके लिए? क्या माता-पिता अपने बच्चों को सज़ा नहीं देते अगर बच्चा कोई ग़लती करें तो? इसका जवाब शायद बुद्धिजीवी ये देंगे कि सज़ा का मतलब ये नहीं की मार ही दिया जाये और फिर वही बुद्धिजीवी भारत की महान चलचित्र(फ़िल्म) मदर इंडिया देखकर कहेंगे की वैसा बेटा हो तो वैसी ही माँ होनी चाहिए। बुद्धिजीवी जो अपनी संगठन(पार्टी) बनाकर सुबह-शाम दूसरे पार्टी को गाली देते रहते हैं, उनके लिए कुछ मुद्दा नहीं तो यही मुद्दा सही। इन्हीं सब से अमन दुखी हो गया और फिर अपने दोस्त राकेश की लिखी कविता पढ़ने लगा-

कभी घर में, तो कभी सरहद पर.।
कभी अपनों पे, तो कभी गैरों पर.।
जोर बताना पड़ता है, हथियार उठाना पड़ता है..।।

खामोशी को जब कमजोरी समझे सब,
तब दहाड़ लगाना पड़ता है.।
शान्ति स्थापित करने को कभी,
प्रचंड रूप दिखाना पड़ता है..।।

गर्व है मुझे उन लोगों पे,
जिन्होनें देश के आवाम का दर्द सुना.।
गर्व है मुझे उन लोगों पे,
जिन्होनें देश सेवा का काम चुना..।।

आभारी हूँ उन देश भक्‍तों का,
जिन्होनें दुश्मनों के इरादों को नाकाम किया.।
कृतज्ञ हूँ उन शहीदों का,
जिन्होनें कर्तव्य के लिये जान तक कुर्बान किया..।।

अफसोस है ऐसे लोगों से,
जिनको याद दिलाना पड़ता है.।
खेद है ऐसे इंसानों से,
जिन्हें इंसानियत सिखाना पड़ता है..।।©RRKS।।

Saturday, July 23, 2016

सच्ची घटनाओं पे आधारित- " दलित बन गया"

सच्ची घटनाओं पे आधारित- " दलित बन गया"

अमन, गुजरात के अहमदाबाद शहर में एक निजी कम्पनी के लिए बतौर प्रबंधक(मैनेजर) अपने शहर बोकारो स्टील सिटी जो झारखंड में है से आया था। अमन नई जगह में नई भाषा, नई परंपरा, नई संस्कृति, नयें लोगों से तालमेल बिठाने की कोशिश कर रहा था। इस नयी जगह में जितने भी नयें लोगों से अमन मिला सभी अच्छे ही मिलें, तो जल्द कईयों से दोस्ती भी हो गयी। चूंकि अमन अकेला ही था तो वो मेस(भोजनालय) में ही खाता था, हालांकि खाना वो गुजराती खाता था मगर दाल पंजाबी खाता था। अरे हाँ, पहले ये समझ लेते हैं की आखिर ये पंजाबी और गुजराती दाल होती क्या है। पंजाबी दाल मतलब स्वाद में तीखी और गुजराती मतलब स्वाद में मीठी। तीन- चार महीनें में ही अमन को अहमदाबाद भी धीरे-धीरे जमने लगा था, यहाँ के शांत और खुशनुमा माहौल से वो प्रभावित था।

मगर एक रात अचानक सड़क पे बहुत शोर मचने लगा,घर के बरामदे से जब उसने देखा तब करीब 40-50 के झुंड में कई युवा सड़क पर हाथों में लोहे-लकड़ी से तोड़-फोड़ कर रहे थे और धीरे-धीरे ये भीड़ और बेकाबू हो गयी और कई सरकारी सम्पत्ति को आग तक लगा दियें। अमन फिर अपने कमरे में आकर टीवी में समाचार देखने-सुनने लगा तो पता चला कि इंसानी समाज में एक वर्ग जाति के नाम पे आरक्षण के लिए जो आंदोलन कर रही थीं, वहाँ कुछ बातों को लेकर पुलिस वालों और तथाकथित कुछ आंदोलनकारियों के बीच झड़प हो गई और देखते-देखते चंद घंटों में पूरा गुजरात जलने लगा। नतीजतन तीन दिन तक प्रदेश में कर्फ़्यू और अमन जैसे बिना कोई गुनाह किए अपने घर में बंद कुछ भी खाकर सजा काटने को मजबूर था। *अमन के दिलोदिमाग में एक और सवाल भी था हर उस तथाकथित आंदोलनकारियों से जो हर तरह से सक्षम भी थे कि आखिर उन गरीबों का क्या जो रोज जी तोड़ मेहनत करके भी अपने व अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी की भी व्यवस्था नहीं कर पाते हैं, उनकों किस गुनाह की सजा मिल रही थी। और शायद उन गरीबों में अधिकांश, जाति से भी निचले तबके की ही हों। अमन यही सोचता रहा कि पता नहीं क्या और किस के लिए ये आंदोलन था, जिसमें किसी की भलाई शायद न के बराबर मगर कईयों के लिए सिर्फ नुकसान ही नुकसान।*मगर जैसा कि हमेशा होता आया है, लोग ये सोचने के बजाय कि खुद उनमें क्या कमियाँ हैं न सोच कर पुलिस को, सरकार को कोस कर चार-पाँच दिन बाद फिर अपने अपने जिंदगी में पहले की ही तरह मशगूल हो गयें और माहौल भी पहले की ही तरह सामान्य हो गया। अमन भी पहले की तरह ही गुजराती थाली में पंजाबी दाल का आंनद लेने लगा। देखते देखते अमन को गुजरात में अब एक साल से ज्यादा हो गया।

एक रात अमन अपने टीवी पर समाचार देख-सुन रहा था की तभी टीवी स्क्रीन पे समाचार चलने लगा की चार दलितों को बाँधकर बहुत बेरहमी से कई लोगों ने पिटाई की। पिटने वाले खुद को गौ रक्षक कहते हैं, पिटने का कारण था की गौ रक्षकों को लगा की मरी हुई गाय जो उन दलित लड़कों के पास से पाया गया था, उसे उन लड़कों ने ही मारा है। बात गलत थी तो खबर बनना ही था, मगर बात इतनी बढ़ गयी की कई जगह भीड़ उग्र हो सरकारी संपत्ति को आग लगाने लगे। इस आग में घी का काम समाचार वाले करने लगे, कई महान पत्रकार अपने चैनल के माध्यम से कुछ विद्वानों को साथ बिठाकर इस चर्चा में लग गयें कि क्या दलित युवकों के साथ सही हुआ। इसके अगले दिन दलित समाज की ओर से गुजरात बंद का आह्वान किया गया जिसका मिलाजुला प्रभाव रहा। कई महान नेता जो दूसरे प्रदेश से थे वो भी इस दौरान उन दलित लड़कों से मिलने की घोषणा कर दियें, सिर्फ ये बताने के लिए की वो दलितों के साथ हैं। खैर अगले दिन अमन अपने औफिस(कार्यालय) गया, इधर माहौल सामान्य ही था मगर कुछ जगहों पे बंद का असर था लिहाजा औफिस में चर्चा होने लगी उसी बात पर। *अमन के औफिस में प्रकाश नाम का एक दलित कर्मचारी भी है, ये बात अमन जानता था और जब चर्चा हो रही थी तब प्रकाश वहीं मौजूद भी था। अमन ने चर्चा के दौरान कहा की इस बंद से कितनों का नुकसान होता है, लोग सोचते भी नहीं और किसी की गलती की वजह को जाति या धर्म का नाम देकर उपद्रव करते हैं, इस पर प्रकाश ने कहा की चार दलित के साथ गलत हुआ और कुछ दलित इसको पूरे दलित समाज से जोड़ रहे हैं। ये सुनकर अमन को बहुत अच्छा लगा और उसने प्रकाश की सोच की तारीफ़ की और कहा की यदि वहाँ चार दलित की जगह चार मुस्लिम होते तब शायद ये दलित भी उन गौ रक्षकों के साथ मिलकर पिटाई ही नहीं बल्कि मार ही दियें होते उन चारों को तब वो खुद को दलित नहीं बल्कि हिंदू कहते और अगर वो खुद को इंसान कहते हैं तो पहले इंसानियत को समझें। जिन लोगों ने पिटा उनकों सजा मिलनी ही चाहिए मगर हिंदू या मुस्लिम या दलित या कोई और जाति-धर्म का दुश्मन न मानकर बल्कि इंसानियत का दुश्मन मानकर।*

इस घटना के अगले ही दिन उत्तर प्रदेश के एक नेता ने वहीं की एक महिला नेता की बुराई बताते हुए उस महिला नेता के चरित्र की तुलना वैश्या से कर दिया। संसद में सारे नेता, टीवी पर सारे महान पत्रकार इसकी निंदा करने लगे। करनी भी चाहिए, बहुत ज्यादा निंदा होनी चाहिए। अमन टीवी पर ही खबर देखा-सुना मगर ये क्या, जिस महिला नेता के बारे में घटिया बातें बोली गयी वो इसको दलित नेता का अपमान साबित करने लगीं और कई महान नेता और महान पत्रकार उस महिला का अपमान न बोलकर दलित महिला का अपमान बोलने लगे। पूरे देश में इसके खिलाफ आवाज उठीं मगर मुद्दा घटिया बयान से भटक कर "दलित बन गया"। फिर महिला नेता और उनके कई सहयोगी अपमान के बदले में उस नेता जिसने घटिया बयान दिया था उसकी पत्नी और बेटी का अपमान करने लगें।

अमन बहुत ही दुखी मन से अकेले में विचार करने लगा कि *लोग अपने अक़्ल का इस्तेमाल क्यों नहीं करतें.? क्यों किसी नेता या पत्रकार से इतने प्रभावित हो जाते हैं कि उनकों या उनके सभी विचारों को महान मानने लगते हैं.?* और अमन फिर अपने दोस्त राकेश की लिखी कविता पढ़ने लगा-

जब पूछता हूँ मेरे मन से,
क्या बदल रहा है हिन्दुस्तान.?
आवाज तब आती है अंदर से,
क्या तू खुद को बदल पाया इंसान..??

वही जाति की राजनीति,
वही धर्म पे कूटनीति.।
अधिकारों का हनन करके,
सुना रहे सब आपबीती..॥

ताजमहल कब्र है या है शिवालय,
इस पर हंगामा आज भी है.।
टूट गयें मंदिर और मस्जिद,
आक्रोश जिवित आज भी है..॥

शहरों में सब बस रहे हैं,
गाँव बदहाल आज भी है.।
हजारों अरबपति बन गये हैं,
लाखों गरीब आज भी है..॥

नारी शोषण आज भी है,
बाल कुपोषण आज भी है.।
शासन प्रशासन सुधार रही है,
मगर भ्रष्टाचार आज भी है..॥

हाँ हो रही है उन्नति,
ऊँचा हो रहा है स्थान.।
सम्प्रदाय के नाम पे मगर,
फिर बँट रहा है हिन्दुस्तान..॥

आज नहीं होना है कुर्बान,
अगर बढ़ाना हो देश का मान.।
अमल करो बस इस नारे को,
जय जवान जय किसान..॥

मन का मैल दूर करो,
सफल होगा स्वच्छता अभियान.।
गर्व से फिर कहना तुम,
मेरा भारत है महान..॥
मेरा भारत है महान..॥© RRKS..॥

Sunday, July 17, 2016

कल किसी मोड़ पे अगर मिलोगे कहीं,
ख्याल इस बात का रखना जरा.।
न देखना प्यार से तुम मेरी ओर,
वरना आँखें बता देंगे राज गहरा..॥
Kal kisi mod pe agar miloge kahin,
Khayal is baat ka rakhna jara..
Na dekhna pyar so tum meri ore,
Varna aankhein bata denge raaz gahra..

जा रहे हो अगर तुम दूर मुझसे,
तो साथ यादों के मेरे भी ना रहना.।
भले समझो इसे तुम मेरी बेखुदी,
मगर प्यार था मुझसे कभी ना कहना..॥
Jaa rahe ho agar tum dur mujhse,
To saath yaadon ke mere bhi na rahna..
Bhale samjho ise tum meri bekhudi,
Magar pyar tha mujhse kabhi na kahna..

जाते जाते मेरी ये बातें सुन लो,
रह ना जाये कोई गिला शिकवा.।
किसी और से तुम प्यार करो न करो,
ना रहूँगा मैं अब तुम्हारा मितवा..॥
Jaate jaate meri ye baatein sun lo,
Rah na jaye koi gila shikwa..
Kisi aur se tum pyar karo na karo,
Na rahunga main ab tumhara mitwa..

मेरा है क्या मैं तो हूँ अजनबी,
अपनों के पास लौट जाऊँगा मैं.।
जो बातें आज रूला रही है मुझे
कल इन्हीं पे ठहाके लगाऊँगा मैं..॥©RRKS!!
Mera hai kya main to hoon ajnabi,
Apno ke paas laut jaunga main..
Jo baatein aaj rula rahi hai mujhe,
Kal inhi pe thahake lagaunga main..©RRKS!!

Wednesday, July 13, 2016

कश्मीर कहाँ से आया !?

कश्मीर कहाँ से आया !?

अमन, भारत के नव विभाजित राज्य झारखंड के बोकारो स्टील सिटी से बारहवीं पास कर उच्च शिक्षा हेतु मध्य प्रदेश के इंदौर शहर आया था, पढ़ाई पूरी भी की उसने मगर पढ़ाई के दौरान उसे सीमा नाम की लड़की से प्यार हो गया। दोनों पढ़ाई पूरी करने के बाद एक होने का मतलब शादी करने का फैसला कियें, मगर जिसमें दोनों के घरवालों की भी मर्ज़ी हो। पढ़ाई पूरी करने के बाद दोनों अपने अपने घर पे जिक्र कियें। अमन के माता पिता बहुत मुश्किल से और सिर्फ़ अमन की खुशी के लिए आखिरकार मान गयें मगर सीमा के घर पे तो सभी विरोध करने लगे, उसके माता, पिता, भाई, बहन सभी। उनके अनुसार दो वजह थे, ना कहने के लिए। पहली अंतर्जाति और दूसरी अंतरराज्यीय (Inter-Caste & Inter-State)। सीमा बहुत कोशिशों के बाद भी किसी को मना न सकी क्योंकि कोई उसकी सुनने को तैयार ही नही था। अमन ने सीमा के पिता से बात करने की कोशिश की तो गालियों के सिवा कुछ हासिल नहीं हुआ, फिर अमन ने सीमा के भाई से बात करने की कोशिश की तो गालियों के साथ धमकियां भी मिली। मगर अमन धैर्य से बात करने की कोशिश करता रहा तब सीमा के भाई ने अमन से कहा- कुछ भी हो जाये मगर कश्मीर पाकिस्तान का नहीं हो सकता। अमन आश्चर्यचकित होकर बोला- कश्मीर कहाँ से आया हमारे बीच और अगर तुम वैसे ही समझना चाहते हो, तो फिर कशमीरीयों से भी तो पुछो कि वो क्या चाहते हैं और उनकी खुशी किस में है। और कोई भारतीय कशमीरी पाकिस्तान का होना भी नहीं चाहता मगर भारतीय ही अगर कशमीरीयों को ना समझें तो किसे और कैसे समझायें। मगर कुछ और गालियाँ और धमकियां ही मिली अमन को जवाब में और सीमा की शादी किसी और से हो गयी। अमन और सीमा चाहते तो घरवालों के बिना भी शादी कर सकते थे, अमन चाहता तो सीमा के पिता और भाई के गालियों और धमकियों का जवाब दे सकता था मगर वें पहले ही फैसला कर चुकें थे कि घरवालों की मर्जी के बिना वो शादी नहीं करेंगे।

"कशमीर में आतंकवादी घुसपैठ। कशमीर के नौजवान भी हथियार उठा रहें हैं। कशमीर में कई आतंकवादी मारे गयें, मगर कुछ उनको आतंकवादी कह रहें हैं, कुछ शहीद।"

अमन ने आज जब इन खबरों को देखा, सुना और पढ़ा तो उसे सीमा के भाई की बात याद आ गई और वो सोचने लगा कि यदि वो भी उस दिन सीमा के घरवालों के गालियों और धमकियों का जवाब देकर और सबके मर्जी के बिना अगर सीमा से शादी कर लेता तो क्या वें दोनों आज खुश रहतें। उस समय अमन के कई हमदर्द भी थे जिनका सहारा लेकर अमन, सीमा के पिता और भाई का बुरा हाल कर सकता था। पलक झपकने जितनी देर में जवाब भी उसके अंतर्मन से आ गई। और जवाब था "ना"। कई लोगों को दुखी करके और वो भी अपने लोगों को दुखी करके भला कैसे कोई खुश रह सकता है। चूंकि अमन आज समझ चूका था कि सीमा के घरवालों को सिर्फ जाति से या राज्य से दिक्कत नहीं थी, बल्कि सीमा के घरवालों को ये भी दिक्कत थी कि सीमा अपने जिन्दगी का फैसला खुद कैसे कर सकती है। जबकि उससे ज्यादा समझदार और जिम्मेदार लोग हैं उसके जिन्दगी का फैसला करने के लिए। आज कश्मीर का भी वही हाल है जिसकी चिंता और चिंतन के लिए कई समझदार और जिम्मेदार लोग हैं, पर फैसला उनको अपने फायदानुसार करना है ना कि कश्मीरीयों के अनुसार। और कई हमदर्द हैं जो अंजाने में और कई हमदर्द बनने का नाटक कर भड़काने का काम कर रहें हैं।

तभी अमन का ध्यान एक और खबर पे गयी, जिसमें यें बात थी कि कई कश्मीरी अपना अलग राज चाहते हैं, शायद लिखने का पर्याय अलग देश था। अमन के मन में एक बात आई कि क्या झारखंड बहुत ज्यादा विकसित हो गया बिहार से अलग होने के बाद और क्या मध्य प्रदेश को बहुत नुकसान हुआ छत्तीसगढ़ बनने के बाद? चूंकि दोनों राज्यों से जुड़ाव के कारण अमन को खबर थी दोनों के हालात। और वो चिंतित हो इस निष्कर्ष पे आया कि भोले-भाले कश्मीरी भी फिर से औरों की राजनीतिक महत्वकांक्षाओं के शिकार हो रहे हैं।

आज कश्मीर जल रहा है, कारण क्या है?
कुछ कहेंगे धर्म, कुछ कहेंगे आतंकवाद। बिना जाने, बिना समझे सभी अपने समझ का प्रदर्शन करेंगे। आज भारत सरकार को कश्मीर के लोगों से बात करनी चाहिए। उनके तकलीफ, उनके जरूरत क्या हैं वो समझना चाहिए। संचार माध्यम जितने भी हैं, सबको सकारात्मक और पूरी खबरें बतानी चाहिए। कश्मीर के बहुत लोगों को खुद सोचना चाहिए कि हथियार उठाने से क्या उनको या उनके घरवालों को वो जिन्दगी मिलेगी जिसके लिए वो हथियार उठा रहे हैं। और उनको खास तौर से उन लोगों की सोच से भी बचना चाहिए जो उनकों शहीद बोल कर उकसा रहे हैं। नौजवानों को शहीद बोल कर उकसाने का और आतंकवादी बोल कर भड़काने का काम किया जा रहा है, और फिर उसी से अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाअों को पूरा भी किया जा रहा है।
अमन मन ही मन भारत सरकार से, जम्मू-कश्मीर के लोगों से, सभी विद्वानों से जो जाने-अंजाने भड़काने का काम कर रहें हैं, पड़ोसी मुल्कों से और पुरी दुनिया से अपील करने लगा की "जीयो और जीने दो" फिर अपने दोस्त राकेश की लिखी कविता पड़ने लगा-

नफ़रत की आँधी फैल रही,
खत्म हो रहा है प्यार.।
चंद लोगों की वजह से,
बँट रहा है संसार..॥

कुछ अभिमान की खातीर तो,
कुछ गुस्से का हैं शिकार.।
कारण कुछ भी हो मगर,
बढ़ रहा है अत्याचार..॥

संगठन बनाकर बाँट रहें,
बाँट रहें सबके विचार.।
जाति धर्म के नाम पे फिर,
अपनों पे कर रहें हैं वार..॥

कुछ आज़ादी के नाम पर,
नारे खूब लगा रहें.।
परंपरा और संस्कार की वो,
धज्जियाँ खुद उड़ा रहें..॥

असहिष्णुता के नाम पर,
ठहाके सब लगा रहें.।
मुद्दा बना जब मुद्दों का,
वो तब मुद्दा ही भटका रहें..॥

कहीं भक्तों की तो कहीं,
भटकों की टोली हैं.।
कभी निच कर्म हैं उनके,
कभी शर्मिंदा करतीं बोली हैं..॥

जिनकों खुद नहीं शिष्टाचार,
वो सीखा रहें आचार.।
अहंकार ही है उनका,
जिसका जल्द करना होगा उपचार..॥©RRKS!!

Sunday, July 10, 2016

शब्दों की जरूरत नहीं,
भाव बयाँ कर देते हों जब.।
अभिव्यक्ति की कमी होगी तो,
शब्द भी कम पड़ेंगे तब..॥
Shabdon ki jarurat nahi,
Bhav bayan kar dete hon jab..
Abhivyakti ki kami hogi to,
Shabd bhi kam padenge tab..

इशारों की भाषा भी होती है,
इस बात को भी समझ लो जरा.।
मनोदशा पता चल जाता है,
बस देखते ही चेहरा..॥
Isharon ki bhasha bhi hoti hai,
Is baat ko bhi samajh lo jara..
Manodasha pata chal jata hai,
Bas dekhte hi chehra..

कभी पलकें बातें करते हैं,
कभी नज़रें सब कुछ कहते हैं.।
लफ़्जों के बिना लब कई बार,
बहुत कुछ व्यक्त कर देते हैं..॥
Kabhi palkein baatein karte hain,
Kabhi nazrein sab kuch kahte hain..
Lafzon ke bina lab kai baar,
Bahut kuch vyakt kar dete hain..

बिन इशारें मौन रहकर भी,
बातों का पता चल जाता है.।
धड़कनें और साँसों की गति,
जब घट या बड़ जाता है..॥
Bin isharein maun rahkar bhi,
Baaton ka pata chal jaata hai..
Dhadkanein aur saanson ki gati,
Jab ghat ya badh jaata hai..

हाथों का फैलना और जुड़ना,
पैरों की उंगलियों का सिकुड़ना.।
ये अदायें अल्फाज़ बन जाते हैं,
भले देखने को हो मुड़ना..॥
Haathon ka failna aur judna,
Pairon ki ungliyon ka sikudna..
Ye adaayein alfaz ban jaate hain,
Bhale dekhne ko ho mudna..

उक्ति की जब भी हो कमी,
इशारों में तब कह देना.।
समझ तब भी न आये तो,
कोरे कागज में लिख देना..॥©RRKS!!
Ukti ki jab bhi ho kami,
Isharon mein tab kah dena..
Samajh tab bhi na aaye to,
Kore kagaz mein likh dena..©RRKS.