Sunday, August 14, 2016

"आज़ादी का मतलब"

विश्व में पुरूष और महिला को बराबर कहा जाता है, भारत में तो नारियों को देवी तक का दर्जा दिया जाता है। मगर कहने और समझने का अंतर रोज़ ही दिख जाता है। आज विश्व में ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ नारी ख़ुद को सुरक्षित महसूस कर सके। विश्व भर से कितने ही नारी शोषण की ख़बरें रोज़ देखने, सुनने और पढ़ने के लिए मिलते हैं। ऐसे ख़बरों को सुन के अरमान नामक युवक नेता, अभिनेता, सिनेमा और कईयों को ज़िम्मेदार बताने लगा फिर बड़े मज़े से 'मेरे फ़ोटो को सीने से यार, लगा ले सईंया फेविकोल से' गाना सुनने लगा। उसकी बात सुन उसके दोस्त अमन ने कहा- अरमान शायद पहले हम ख़ुद ही ज़िम्मेदार हैं इन सब के लिए तब कोई और। हम ही हैं जो या तो बढ़ावा देते हैं या नज़र अंदाज कर देते हैं बहुत से ग़लतियों को और बाद में उनको ही दोष देते हैं। अब जैसे जिस गाने को तुम सफल गाने के रूप में समझ गुनगुना रहे हो उसके बोल निम्न स्तर(low level) का होते हुए भी तुम्हें उसमें कोई बुराई नहीं दिखी। अरमान ने अमन को कहा- क्या यार तुम भी हर बात में अब बुराई निकालने लगे, बस गाना ही तो है। अमन ने 'मैं तो तंदूरी चिकेन हूँ यार, गटका ले मुझे अल्कोहल से' बोल को सुनाते हुए अरमान से कहा- ये दर्शाता है औंरतों के प्रति सोच को और मैं भी किसी गाने को ज़िम्मेदार नहीं बोल रहा मगर आज ज़रूरत है सोच में बदलाव लाने की, सिर्फ़ कहने के लिए नहीं बल्कि अमल करने के लिए भी। ऐसे तो तुम किसी भी गाने का अर्थ अपने अनुसार बना सकते हो और दोष किसी और को दे सकते हो- अरमान ने अमन से कहा। अमन ने बड़े शालीनता से कहा- तुम भी तो कुछ देर पहले यही कर रहे थे। मगर ज़िम्मेदार तो हैं समाज ये भी सत्य है, अगर हम अपनी ज़िंदगी में ही नज़र डाले तो कई उदाहरण मिल जायेंगे ये साबित करने के लिए। चलो आज तुम को बचपन की कई बातें बताता हूँ जो तुम नहीं जानते और कई बातें तुम्हें याद दिलाता हूँ जो सिर्फ़ शरारत नहीं थे-अमन ने अरमान से कहा।

अमन और अरमान की दोस्ती बचपन से ही थी। दोनों एक ही क्लास(कक्षा) में पढ़ते थे, स्कूल के बाद भी वो साथ ही खेलते थे चूँकि दोनों एक ही मोहल्ला में रहते थे। तुम्हें याद होगा अरमान, जब हम नौ या दस साल के थे तब तुम, सलमान, शिव, कमल, रमेश और मैं साइकिल रेस करते थे। हम पाँचों अपनी-अपनी साइकिल लेकर रोज़ कम से कम दस चक्कर(राउंड) लगाते थे। एक दिन चक्कर लगाते वक़्त मैं पिछे रह गया था, उस दिन असल में एक लड़का जिसकी उम्र क़रीब बीस साल होगी ने मुझे रोका था। पहले तो वो मुझसे पूछा कहाँ रहते हो, कहाँ पढ़ते हो फिर उसने पूछा एक बहुत अच्छी पुस्तिका(बुक) है मेरे पास क्या तुम लोगे.? मेरे पास पैसे थे भी नहीं और मुझे तुम लोगों को पकड़ना भी था तो मैं मना कर जाने लगा, तभी वो मेरे साइकिल के हैंडल को पकड़ के मुझसे बोला- पहले देख तो लो कैसी और कितनी मज़ेदार है ये पुस्तक, मना नहीं करोगे फिर। फिर उसने अपने किताब के अंदर से एक किताब निकाली और मुझे दिखाने लगा। उस किताब में नग्न(न्यूड) लड़कियों की तस्वीरें थी, देखते ही मुझे बड़ा अजीब लगा और मैं दूसरे तरफ़ देखकर बोला- भैया, मुझे नहीं लेना ये किताब और मुझे मेरे दोस्तों के पास जाना है। मगर वो तो जैसे उस किताब को बेचने ही निकला था, कहा- अरे तुम देखो तो इसको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा इससे। मैं डर गया था तब, समझ नहीं आ रहा था कैसे वहाँ से भागूँ । कोई उधर से गुज़र भी नहीं रहा था, इतने में तुम सब आते दिखे तो मुझे सुकून मिला और मैंने बोला- भैया, वो देखो मेरे दोस्त आ रहे हैं उनको दे देना आप ये किताब। उसने बोला- लेना है तो लो वरना मैं जा रहा हूँ, ये कहकर वो चला गया। तुम सब मेरे पास आयें और पूछे- कौन था वो? मुझे उस समय बहुत अजीब लग रहा था जो आज भी बता नहीं सकता मगर तुम लोगों को देख बहुत ख़ुशी हुई थी तो मैंने बस इतना कहा था- पता नहीं कोई गन्दी किताब बेचने वाला था, और फिर हमलोग साथ साइकिल चलाने लगें थे। फिर तुम्हें याद होगा, जब हम क्लास ऐट(आठवीं) में थे तो हमारे क्लास में एक लड़का था कुणाल, जो सबको एक जगह बिठाकर कुछ किताबें दिखाता और कुछ कहानियाँ सुनाता था। हाँ भाई उसे कौन भुल सकता है, उसने ही तो हमारे क्लास को बिगाड़ा था। कुणाल भी वैसी ही पुस्तक दिखाता था सबको जैसी पुस्तक की तुम बात कर रहे थे, अब समझ आया तुम क्यों हमारे साथ नहीं रहते थे उस वक़्त- अरमान ने कहा। अमन मुस्कुराकर बोला- भाई उसने किसी को नहीं बिगाड़ा, सब अपनी मर्ज़ी से बिगड़े। सबको मज़ा आता था उसकी बातें सुनकर इसलिए उसका साथ देते थे और जब भी बात उठती है उसकी तो सब कहते हैं कि कुणाल ने सब को बिगाड़ा।

अरमान से रहा नहीं गया और ये बताने के लिये कि वो भी महिलाओं की इज़्ज़त करता है, अमन से कहा- तुम्हें शायद याद होगा जब हम क्लास इलेवन(ग्यारहवीं) में थे तो दो लड़कों को बहुत पिटा था क्योंकि उन्होंने रूही नाम की लड़की को छेड़ा था। अमन ने कहा- भाई मुझे याद है, एक को मैंने ही पिटा था और रूही को तुम पसंद करते थे इसलिए उसकी मदद किये थे। अच्छा ठीक है तुम्हें याद होगा संतोष नाम के लड़के को मैंने एक बार पिटा था- अरमान ने कहा। याद है मुझे और ये भी याद है कि उसको तुमने इसलिए पिटा था क्योंकि तुम्हारी बहन की सहेली को उसने छेड़ा था और तुम्हारी बहन तब उसके साथ ही थी- अमन ने कहा। तू भी तो राशि नाम की लड़की को पसंद करता था और उसके लिये कितनों को पिटा भी था फिर भी वो तुमसे नहीं पटी थी- अरमान ने अमन पर व्यंग्य किया। अमन ने शांत भाव से अरमान से कहा- पहले तो मैं ये साफ़ कर दूँ कि मैं राशि को पटाना नहीं चाहता था बल्कि उसे चाहता था मगर कभी उससे कह नहीं सका। उसके आगे-पिछे होता था उसके सुरक्षा के लिये मगर बाद में वो भी छोड़ दिया था, इसलिये नहीं कि वो मुझसे प्यार नहीं करती बल्कि इसलिये क्योंकि मुझे एहसास हुआ था कि मेरे आगे-पिछे होने से वो बहुत असहज महसूस करती थी और शायद डरती भी थी क्योंकि कई बार मेरे साथ सात-आठ दोस्त भी होते थे। तुम्हें प्रयास करना चाहिए था अमन- अरमान ने कहा। अमन ने जवाब में कहा- तुम्हें याद होगा अरमान हमारे साथ एक शेखर नाम का लड़का पढ़ता था, उसकी वजह से मैंने जाना कि लड़के जब झुंड में होते हैं तो कई बार अकेली लड़की को शिकार की तरह देखते हैं। अरमान ने पूछा- क्यों क्या हुआ ऐसा? अमन ने तब बताया- एक बार मैं, शेखर और साथ में तीन-चार दोस्त घूम रहें थे। हम सब फ़िल्मों की बातें कर रहें थे कि हीरो कैसे हीरोइन को पटा लेता है। बातों-बातों में शेखर ने कहा कि वो किसी भी लड़की को बीच रास्ते में भी पकड़ सकता है, मैंने शेखर से कहा- भाई कहने और करने में बहुत अंतर होता है। इतने में उधर से दो लड़कियाँ गुज़र रहीं थी, अचानक शेखर उनकी तरफ़ दौड़ा और एक लड़की की बाँह पकड़ लिया। लड़की ने उसे गाली देते हुए छोड़ने को कहा मगर वो हमारी तरफ़ देख हँसने लगा और बाक़ी भी उसके साथ हँसने लगें। वो लड़की भी हमारी तरफ़ देखने लगी, जब उसकी नज़र मेरी नज़र से मिली तो लगा जैसे वो मदद के लिये मुझे देख रही हो, मेरी नज़र शर्म से झुक गयी। मैं कुछ कहता या करता उसके पहले ही शेखर हँसता दौड़ता हमारे पास आ गया और लड़कियाँ वहाँ से चली गयीं। शेखर पास आकर बोला देखा कितना आसान है, मन तो किया दो तमाचा रख दूँ शेखर की गाल पर मगर मुझे लगा जैसे मेरी भी ग़लती थी उसमें तो मैंने शेखर को ग़ुस्से में बोला- आज के बाद तुम मेरे आस-पास भी मत दिखना, बाक़ियों को भी चेतावनी देकर मैं वहाँ से अकेला अपने घर आ गया। तीन-चार घंटे बाद सभी मेरे घर आयें, एक ने कहा कि शेखर को ग़लती का एहसास है और वो तुमसे माफ़ी माँगने आया है। मैं शेखर से बाहर जाकर मिला, वो मेरे पास आया और कहा- मुझे माफ़ कर दो भाई, मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हुई है मगर अब मैं कभी ऐसा नहीं करूँगा। शेखर की आँखों में मुझे सच्चाई दिखी, मैंने कहा- कल मिलते हैं आज अपने-अपने घर जाओ। अगले दिन हम मिलें, कई बातें कियें मगर आज तक फिर उस बात की ज़िक्र तक नहीं कियें।

चलो जाने दो पुरानी बातें और आज तुम ये सब बातें क्यों कर रहे हो, आज आज़ादी का जश्न मनाते हैं, आज स्वतंत्रता दिवस जो है- अरमान ने अमन से पूछा। अमन अरमान की आँखों में देखते हुए बोला- यार आज सुबह जब तुमको लेने मैं एयरपोर्ट(हवाई अड्डा) आया था तब क़रीब आधे घंटे मैं तुम्हारा इंतज़ार किया। इस दौरान जब मैं खड़ा था तब मैंने देखा एक लड़की बहुत सुंदर, बहुत ही ख़ूबसूरत मगर बहुत ही छोटे-छोटे कपड़ों में कार पार्किंग से आगमन द्वार(arrival gate) की ओर आने लगी। मन कर रहा था उसे देखूँ मगर उसे ऐसा न लगे की उसके अंगों को देख रहा हूँ इसलिये मैं उसे तिरछी निगाहों से बीच-बीच में देखता की वो किधर जा रही है। कुछ सेकेंड बाद फिर मूँड़ के देखा तो वो दिखी नहीं फिर देखा तो वो लड़की मुझसे केवल दो क़दम दूर खड़ी थी, थोड़ी ही देर बाद वो मुझसे केवल एक क़दम की दूरी पे खड़ी थी जबकि वहाँ बहुत जगह था। आते-जाते सभी लोग उसे ऊपर से नीचे तक देखते जाते। मैं शायद यही देखने लगा और जिस लड़की को मैं दूर से देखना चाह रहा था वो बिलकुल पास थी मेरे, फिर भी मैं उसे नहीं देख रहा था। बीच में कुछ लोग मेरे आगे आकर खड़े हुए तब वो लड़की थोड़े दूर खड़ी हो गयी मगर जैसे वो लोग गयें वो लड़की फिर मेरे क़रीब आकर खड़ी हो गयी। जानते हो अरमान तब मुझे ऐसा लगा कि मानों इतने लोगों के बीच एक अंजान लड़की मेरे साथ ख़ुद को सुरक्षित और सहज महसूस कर रही है तब मुझे ख़ुद पर बड़ा गर्व महसूस हुआ। उसको अगर मैं देखता तो शायद मुझे थोड़ी देर की ख़ुशी मिलती मगर उसे ना देखकर मैं अपने आप से बहुत ज़्यादा ख़ुश हूँ। और "आज़ादी का मतलब" भी तो यही होता है न अरमान कि सबको बराबरी का सम्मान मिलें। बिलकुल सही कहा तुमने अमन- अरमान ने कहा और चलो कुछ देशभक्ति के गीत सुनते हैं। हाँ, लता जी की' ऐ मेरे वतन के लोगों' सुनेंगे और भी कई गाने मगर उससे पहले एक कविता सुनाता हूँ, जिसे मेरे दोस्त राकेश ने लिखा है- अमन ये कहते हुये कविता सुनाने लगा-

देखते ही दिल में उतर गयें,
इस बात की दुहाई देता है.।
फिर ज़ुल्फ़ों से लेकर पाँवों तक,
घूर-घूर के वो देखता है..॥

खूद की आँखों में शर्म नहीं होती,
और दूसरों को शर्मिंदा करता है..॥
पहनावे को तो कभी प्रवर्ति को,
दोष खूब वो देता है..॥

देखने में कोई बुराई नहीं,
मगर शिकारियों की नजर वो रखता है.।
मौका उसे मिलते ही,
सारे पर वो नोच लेता है..॥

जो ऊँची उड़ान भर सकती है,
अब वो चलने में भी डरती है.।
जो फूल जहाँ को सुगंधित कर सकती है,
अब वो खिलने में भी झिझकती है..॥

चलो माना हुस्न उकसाती है उसे,
फिर नन्हीं कलियों को क्यों तोड़ा जाता है.?
जिन फूलों की दो-चार पत्तियाँ ही बची,
क्यों उनकों भी शिकार समझा जाता है..??

रिश्तों की आड़ में भी,
वो शोषण करता है.।
न जाने किस-किस का मुखौटा लगाये,
वो अपने बीच ही रहता है..॥

भरोसा अब किस पे करें,
आज नारी ये सोचती है.।
गैर हो या हो अपना,
नजरों में सम्मान खोजती है..॥

आग्रह है जिसे चुनौती समझो,
प्रण लो आज से ही सब सुरक्षित हो.।
पुरूष हो तो पुरूषार्थ दिखाओ,
जीवन का भावार्थ बताओ..॥©RRKS।।