Saturday, July 23, 2016

सच्ची घटनाओं पे आधारित- " दलित बन गया"

सच्ची घटनाओं पे आधारित- " दलित बन गया"

अमन, गुजरात के अहमदाबाद शहर में एक निजी कम्पनी के लिए बतौर प्रबंधक(मैनेजर) अपने शहर बोकारो स्टील सिटी जो झारखंड में है से आया था। अमन नई जगह में नई भाषा, नई परंपरा, नई संस्कृति, नयें लोगों से तालमेल बिठाने की कोशिश कर रहा था। इस नयी जगह में जितने भी नयें लोगों से अमन मिला सभी अच्छे ही मिलें, तो जल्द कईयों से दोस्ती भी हो गयी। चूंकि अमन अकेला ही था तो वो मेस(भोजनालय) में ही खाता था, हालांकि खाना वो गुजराती खाता था मगर दाल पंजाबी खाता था। अरे हाँ, पहले ये समझ लेते हैं की आखिर ये पंजाबी और गुजराती दाल होती क्या है। पंजाबी दाल मतलब स्वाद में तीखी और गुजराती मतलब स्वाद में मीठी। तीन- चार महीनें में ही अमन को अहमदाबाद भी धीरे-धीरे जमने लगा था, यहाँ के शांत और खुशनुमा माहौल से वो प्रभावित था।

मगर एक रात अचानक सड़क पे बहुत शोर मचने लगा,घर के बरामदे से जब उसने देखा तब करीब 40-50 के झुंड में कई युवा सड़क पर हाथों में लोहे-लकड़ी से तोड़-फोड़ कर रहे थे और धीरे-धीरे ये भीड़ और बेकाबू हो गयी और कई सरकारी सम्पत्ति को आग तक लगा दियें। अमन फिर अपने कमरे में आकर टीवी में समाचार देखने-सुनने लगा तो पता चला कि इंसानी समाज में एक वर्ग जाति के नाम पे आरक्षण के लिए जो आंदोलन कर रही थीं, वहाँ कुछ बातों को लेकर पुलिस वालों और तथाकथित कुछ आंदोलनकारियों के बीच झड़प हो गई और देखते-देखते चंद घंटों में पूरा गुजरात जलने लगा। नतीजतन तीन दिन तक प्रदेश में कर्फ़्यू और अमन जैसे बिना कोई गुनाह किए अपने घर में बंद कुछ भी खाकर सजा काटने को मजबूर था। *अमन के दिलोदिमाग में एक और सवाल भी था हर उस तथाकथित आंदोलनकारियों से जो हर तरह से सक्षम भी थे कि आखिर उन गरीबों का क्या जो रोज जी तोड़ मेहनत करके भी अपने व अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी की भी व्यवस्था नहीं कर पाते हैं, उनकों किस गुनाह की सजा मिल रही थी। और शायद उन गरीबों में अधिकांश, जाति से भी निचले तबके की ही हों। अमन यही सोचता रहा कि पता नहीं क्या और किस के लिए ये आंदोलन था, जिसमें किसी की भलाई शायद न के बराबर मगर कईयों के लिए सिर्फ नुकसान ही नुकसान।*मगर जैसा कि हमेशा होता आया है, लोग ये सोचने के बजाय कि खुद उनमें क्या कमियाँ हैं न सोच कर पुलिस को, सरकार को कोस कर चार-पाँच दिन बाद फिर अपने अपने जिंदगी में पहले की ही तरह मशगूल हो गयें और माहौल भी पहले की ही तरह सामान्य हो गया। अमन भी पहले की तरह ही गुजराती थाली में पंजाबी दाल का आंनद लेने लगा। देखते देखते अमन को गुजरात में अब एक साल से ज्यादा हो गया।

एक रात अमन अपने टीवी पर समाचार देख-सुन रहा था की तभी टीवी स्क्रीन पे समाचार चलने लगा की चार दलितों को बाँधकर बहुत बेरहमी से कई लोगों ने पिटाई की। पिटने वाले खुद को गौ रक्षक कहते हैं, पिटने का कारण था की गौ रक्षकों को लगा की मरी हुई गाय जो उन दलित लड़कों के पास से पाया गया था, उसे उन लड़कों ने ही मारा है। बात गलत थी तो खबर बनना ही था, मगर बात इतनी बढ़ गयी की कई जगह भीड़ उग्र हो सरकारी संपत्ति को आग लगाने लगे। इस आग में घी का काम समाचार वाले करने लगे, कई महान पत्रकार अपने चैनल के माध्यम से कुछ विद्वानों को साथ बिठाकर इस चर्चा में लग गयें कि क्या दलित युवकों के साथ सही हुआ। इसके अगले दिन दलित समाज की ओर से गुजरात बंद का आह्वान किया गया जिसका मिलाजुला प्रभाव रहा। कई महान नेता जो दूसरे प्रदेश से थे वो भी इस दौरान उन दलित लड़कों से मिलने की घोषणा कर दियें, सिर्फ ये बताने के लिए की वो दलितों के साथ हैं। खैर अगले दिन अमन अपने औफिस(कार्यालय) गया, इधर माहौल सामान्य ही था मगर कुछ जगहों पे बंद का असर था लिहाजा औफिस में चर्चा होने लगी उसी बात पर। *अमन के औफिस में प्रकाश नाम का एक दलित कर्मचारी भी है, ये बात अमन जानता था और जब चर्चा हो रही थी तब प्रकाश वहीं मौजूद भी था। अमन ने चर्चा के दौरान कहा की इस बंद से कितनों का नुकसान होता है, लोग सोचते भी नहीं और किसी की गलती की वजह को जाति या धर्म का नाम देकर उपद्रव करते हैं, इस पर प्रकाश ने कहा की चार दलित के साथ गलत हुआ और कुछ दलित इसको पूरे दलित समाज से जोड़ रहे हैं। ये सुनकर अमन को बहुत अच्छा लगा और उसने प्रकाश की सोच की तारीफ़ की और कहा की यदि वहाँ चार दलित की जगह चार मुस्लिम होते तब शायद ये दलित भी उन गौ रक्षकों के साथ मिलकर पिटाई ही नहीं बल्कि मार ही दियें होते उन चारों को तब वो खुद को दलित नहीं बल्कि हिंदू कहते और अगर वो खुद को इंसान कहते हैं तो पहले इंसानियत को समझें। जिन लोगों ने पिटा उनकों सजा मिलनी ही चाहिए मगर हिंदू या मुस्लिम या दलित या कोई और जाति-धर्म का दुश्मन न मानकर बल्कि इंसानियत का दुश्मन मानकर।*

इस घटना के अगले ही दिन उत्तर प्रदेश के एक नेता ने वहीं की एक महिला नेता की बुराई बताते हुए उस महिला नेता के चरित्र की तुलना वैश्या से कर दिया। संसद में सारे नेता, टीवी पर सारे महान पत्रकार इसकी निंदा करने लगे। करनी भी चाहिए, बहुत ज्यादा निंदा होनी चाहिए। अमन टीवी पर ही खबर देखा-सुना मगर ये क्या, जिस महिला नेता के बारे में घटिया बातें बोली गयी वो इसको दलित नेता का अपमान साबित करने लगीं और कई महान नेता और महान पत्रकार उस महिला का अपमान न बोलकर दलित महिला का अपमान बोलने लगे। पूरे देश में इसके खिलाफ आवाज उठीं मगर मुद्दा घटिया बयान से भटक कर "दलित बन गया"। फिर महिला नेता और उनके कई सहयोगी अपमान के बदले में उस नेता जिसने घटिया बयान दिया था उसकी पत्नी और बेटी का अपमान करने लगें।

अमन बहुत ही दुखी मन से अकेले में विचार करने लगा कि *लोग अपने अक़्ल का इस्तेमाल क्यों नहीं करतें.? क्यों किसी नेता या पत्रकार से इतने प्रभावित हो जाते हैं कि उनकों या उनके सभी विचारों को महान मानने लगते हैं.?* और अमन फिर अपने दोस्त राकेश की लिखी कविता पढ़ने लगा-

जब पूछता हूँ मेरे मन से,
क्या बदल रहा है हिन्दुस्तान.?
आवाज तब आती है अंदर से,
क्या तू खुद को बदल पाया इंसान..??

वही जाति की राजनीति,
वही धर्म पे कूटनीति.।
अधिकारों का हनन करके,
सुना रहे सब आपबीती..॥

ताजमहल कब्र है या है शिवालय,
इस पर हंगामा आज भी है.।
टूट गयें मंदिर और मस्जिद,
आक्रोश जिवित आज भी है..॥

शहरों में सब बस रहे हैं,
गाँव बदहाल आज भी है.।
हजारों अरबपति बन गये हैं,
लाखों गरीब आज भी है..॥

नारी शोषण आज भी है,
बाल कुपोषण आज भी है.।
शासन प्रशासन सुधार रही है,
मगर भ्रष्टाचार आज भी है..॥

हाँ हो रही है उन्नति,
ऊँचा हो रहा है स्थान.।
सम्प्रदाय के नाम पे मगर,
फिर बँट रहा है हिन्दुस्तान..॥

आज नहीं होना है कुर्बान,
अगर बढ़ाना हो देश का मान.।
अमल करो बस इस नारे को,
जय जवान जय किसान..॥

मन का मैल दूर करो,
सफल होगा स्वच्छता अभियान.।
गर्व से फिर कहना तुम,
मेरा भारत है महान..॥
मेरा भारत है महान..॥© RRKS..॥

1 comment:

  1. कहानी बहत अच्छी है . यही है भारत जो आपने बताया .

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