Sunday, September 21, 2014

बेचैनी अब घटती नहीं है,
दिन हो या रात कटती नहीं है.!!
Bechaini ab ghatti nahi hai,
Din ho ya Raat katti nahi hai..

ढूँढती है नज़रें तुम्हे चारों ओर,
धुंध है फैली जैसे हो पुष(पौष) की भोर.!!
Dhoondhti hai nazarein tumhe charon ore,
Dhoondh hai faili jaise ho push ki bhor..

जलता ज़िया रहता है भारी,
जैसे जेठ(ज्येष्ठ) की हो तपती दोपहरी.!!
Jalta jiya rahta hai bhari,
Jaise jeth ki ho tapti dopahari..

तकिये पर होती है रोज़ बरसात,
जैसे सावन(श्रावण) की हो भीगी रात.!!
Takiye par hoti hai roz barsaat,
Jaise saavan ki ho bheegi raat..

बसन्त में जैसे है आती बहार,
मुझे भी है बस तेरा इंतेज़ार.!!
Basant mein jaise hai aati bahar,
Mujhe bhi hai bas tera intezaar..

पतझड़ अब तुम ये खत्म करो,
मुझको बाहों में आ कर भरो.!!
Patjhad ab tum ye khatm karo,
Mujhko baahon mein aa kar bharo..

दुनिया से नही मुझे लगाव,
बस तुमसे ना हो कोई अलगाव..!!RRKS.!!
Duniya se nahi mujhe lagav,
Bas tumse na ho koi algaav..RRKS.

4 comments:

  1. वाह .... लाजवाब हैं सभी शेर ...

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद दिगम्बर जी..।।

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  2. उत्कृष्ट भावो को व्यक्त करती बेहतरीन रचना

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    1. आभार आपका स्मिता जी..।।

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