किस धर्म को मानूँ मैं.?
किस धर्म को मैं अपनाऊँ.?
कौन सा धर्म सर्वोपरि है.?
बात ये मैं समझ ना पाऊँ..।।
Kis dharm ko manu main.?
Kis dharm ko main apnaun.?
Kaun sa dharm sarvopari hai.?
Baat ye main samajh na paun..
मिलता जब भी मैं इंसानों से,
फर्क पता तब चलता है.।
बस नाम अलग होते हैं,
ढंग अलग होता है..।।
Milta jab bhi main insaano se,
Fark pata tab chalta hai..
Bas naam alag hote hain,
Dhang alag hota hai..
धर्म की परिभाषा को इतना ही मैने जाना है,
स्वयं के संग दूसरों को भी जीने का उद्देश्य समझाना है.।
इसका मतलब तो ये हुआ की सब एक ही चीज बताते हैं,
नेकी की राह पे जो चलते हैं वही भगवान पाते हैं..।।
Dharm ki paribhasha ko itna hi maine jaana hai,
Swayam ke sang dusron ko bhi jeene ka uddeshya samjhana hai..
Iska matlab to ye hua ki sab ek hi cheej batate hain,
Neki ki raah pe jo chalte hain wahi bhagwan pate hain..
न जाने फिर किसने यहाँ नफरत की बीज है रोपी.?
क्या फर्क पड़ता है जो मैं लगाऊँ तिलक या फिर टोपी.?
अलग अलग तरीके से ढ़ूंढ रहे सब अपने भगवान,
स्वर्ग पाने की होड़ ऐसी है की खुद को ही भूल गया इंसान..।।
Na jaane phir kisne yahan nafrat ki beej hai ropi.?
Kya fark padta hai jo main lagaun tilak ya phir topi.?
Alag alag tareeke se dhoondh rahe sab apne bhagwan,
Swarg paane ki hod aisi hai ki khud ko hi bhul gaya insaan..
धर्म के नाम पे जाने कितने ही रोज मरते,
रब की दुहाई देते हैं स्वर्ग नर्क की बातें करते.।
इस प्रचार प्रसार में लोग असल धर्म ही भूलते,
भगवान के नाम पे इंसान ही इंसान को ठगते..।।
Dharm ke naam pe jaane kitne hi roj marte,
Rab ki duhai dete hain swarg nark ki baatein karte..
Is prachar prasar mein log asal dharm hi bhulte,
Bhagwan ke naam pe insaan hi insaan ko thagte..
इंसानियत को ही मैंने सर्वोपरि धर्म है माना,
धर्मग्रन्थों से भी मैंने बस यही है जाना.।
नेक कर्म से ही मिलेंगे सभी को भगवान,
जाने इस बात को कब समझेगा धर्मनिष्ठ इंसान..।।© RRKS.।।
Insaniyat ko hi maine sarvopari dharm hai mana,
Dharmgranthon se bhi maine bas yahi hai jaana..
Nek Karm se hi milenge sabhi ko bhagwan,
Jaane is baat ko kab samjhega dharmnishth insaan..© RRKS.
किस धर्म को मैं अपनाऊँ.?
कौन सा धर्म सर्वोपरि है.?
बात ये मैं समझ ना पाऊँ..।।
Kis dharm ko manu main.?
Kis dharm ko main apnaun.?
Kaun sa dharm sarvopari hai.?
Baat ye main samajh na paun..
मिलता जब भी मैं इंसानों से,
फर्क पता तब चलता है.।
बस नाम अलग होते हैं,
ढंग अलग होता है..।।
Milta jab bhi main insaano se,
Fark pata tab chalta hai..
Bas naam alag hote hain,
Dhang alag hota hai..
धर्म की परिभाषा को इतना ही मैने जाना है,
स्वयं के संग दूसरों को भी जीने का उद्देश्य समझाना है.।
इसका मतलब तो ये हुआ की सब एक ही चीज बताते हैं,
नेकी की राह पे जो चलते हैं वही भगवान पाते हैं..।।
Dharm ki paribhasha ko itna hi maine jaana hai,
Swayam ke sang dusron ko bhi jeene ka uddeshya samjhana hai..
Iska matlab to ye hua ki sab ek hi cheej batate hain,
Neki ki raah pe jo chalte hain wahi bhagwan pate hain..
न जाने फिर किसने यहाँ नफरत की बीज है रोपी.?
क्या फर्क पड़ता है जो मैं लगाऊँ तिलक या फिर टोपी.?
अलग अलग तरीके से ढ़ूंढ रहे सब अपने भगवान,
स्वर्ग पाने की होड़ ऐसी है की खुद को ही भूल गया इंसान..।।
Na jaane phir kisne yahan nafrat ki beej hai ropi.?
Kya fark padta hai jo main lagaun tilak ya phir topi.?
Alag alag tareeke se dhoondh rahe sab apne bhagwan,
Swarg paane ki hod aisi hai ki khud ko hi bhul gaya insaan..
धर्म के नाम पे जाने कितने ही रोज मरते,
रब की दुहाई देते हैं स्वर्ग नर्क की बातें करते.।
इस प्रचार प्रसार में लोग असल धर्म ही भूलते,
भगवान के नाम पे इंसान ही इंसान को ठगते..।।
Dharm ke naam pe jaane kitne hi roj marte,
Rab ki duhai dete hain swarg nark ki baatein karte..
Is prachar prasar mein log asal dharm hi bhulte,
Bhagwan ke naam pe insaan hi insaan ko thagte..
इंसानियत को ही मैंने सर्वोपरि धर्म है माना,
धर्मग्रन्थों से भी मैंने बस यही है जाना.।
नेक कर्म से ही मिलेंगे सभी को भगवान,
जाने इस बात को कब समझेगा धर्मनिष्ठ इंसान..।।© RRKS.।।
Insaniyat ko hi maine sarvopari dharm hai mana,
Dharmgranthon se bhi maine bas yahi hai jaana..
Nek Karm se hi milenge sabhi ko bhagwan,
Jaane is baat ko kab samjhega dharmnishth insaan..© RRKS.
bahot hi behtreen....
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद कविता जी..।।
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