जब से होश सम्भाला है तब से मदहोश रहता है,
शौकिया तौर से जिसे शुरू किया आज उसमे ही लिप्त रहता है.।
वाह रे इंसान क्या खूब तेरा बहाना है,
गम हो या हो खुशी बस नशे में डूब जाना है..।।
Jab se hosh sambhala hai tab se madhosh rahta hai,
Shaukiya taur se jise shuru kiya aaj usme hi lipt rahta hai..
Waah re insaan kya khub tera bahana hai,
Gam ho ya ho khushi bas nashe mein doob jaana hai..
मदहोशी में रहने को सुख जो तुम कहते हो,
एक गलती करने के बाद दूसरी तुम ये करते हो.।
दुख अगर मिट जाता नशे को अपनाने से,
कोई बदनसीब नहीं निकलता किसी भी मयख़ाने से..।।
Madhoshi mein rahne ko sukh jo tum kahte ho,
Ek galti karne ke baad dusri tum ye karte ho..
Dukh agar mit jaata nashe ko apnane se,
Koi badnaseeb nahi nikalta kisi bhi mayakhane se..
अधिकांश कुकर्म तो नशे की आड़ में ही होते हैं,
सोचने समझने की क्षमता भी नशे से कई खोते हैं.।
अगर नशे से ही तंदरुस्ती बहुत लोग पाते हैं,
फिर क्यों नहीं अपने बच्चों को वो नशे की लत लगाते हैं.?
Adhikansh kukarm to nashe ki aad mein hi hote hain,
Sochne samajhane ki kshmata bhi nashe se kai khote hain..
Agar nashe se hi tandarusti bahut log paate hain,
Phir kyon nahi apne bachchon ko wo nashe ki lat lagate hain.?
नशे की लत तो लगा लेते हो बस अपने में गुम हो जाते हो,
होश तुम्हे कुछ रहता नहीं और दुनिया को समझाते हो.।
न दे ऐसे खुमारी को बढ़ावा जिससे तू ही पछतायेगा,
तुझे देख के तेरा बच्चा भी नशा करना सीख जायेगा..।।
Nashe ki lat to laga lete ho bas apne mein gum ho jaate ho,
Hosh tumhe kuch rahta nahi aur duniya ko samjhate ho..
Na de aise khumari ko badhawa jisse tu hi pachhtayega,
Tujhe dekh ke tera bachcha bhi nasha karna seekh jayega..
खुशी तो अंदर है तेरे न ढूँढो उसे तुम पैमानों में,
दर्द-ए-दिल की दवा नहीं मिलती नशे की दुकानों में.।
अपनी फिक्र ना सही अपनो की तो परवाह करो,
अपने भविष्य के लिये होश संग निर्वाह करो..।।© RRKS.।।
Khushi to andar hai tere na dhoondho use tum paimano mein,
Dard-e-Dil ki dawa nahi milti nashe ki dukanon mein..
Apni fikr na sahi apno ki to parvaah karo,
Apne bhavishya ke liye hosh sang nirvaah karo..© RRKS.
शौकिया तौर से जिसे शुरू किया आज उसमे ही लिप्त रहता है.।
वाह रे इंसान क्या खूब तेरा बहाना है,
गम हो या हो खुशी बस नशे में डूब जाना है..।।
Jab se hosh sambhala hai tab se madhosh rahta hai,
Shaukiya taur se jise shuru kiya aaj usme hi lipt rahta hai..
Waah re insaan kya khub tera bahana hai,
Gam ho ya ho khushi bas nashe mein doob jaana hai..
मदहोशी में रहने को सुख जो तुम कहते हो,
एक गलती करने के बाद दूसरी तुम ये करते हो.।
दुख अगर मिट जाता नशे को अपनाने से,
कोई बदनसीब नहीं निकलता किसी भी मयख़ाने से..।।
Madhoshi mein rahne ko sukh jo tum kahte ho,
Ek galti karne ke baad dusri tum ye karte ho..
Dukh agar mit jaata nashe ko apnane se,
Koi badnaseeb nahi nikalta kisi bhi mayakhane se..
अधिकांश कुकर्म तो नशे की आड़ में ही होते हैं,
सोचने समझने की क्षमता भी नशे से कई खोते हैं.।
अगर नशे से ही तंदरुस्ती बहुत लोग पाते हैं,
फिर क्यों नहीं अपने बच्चों को वो नशे की लत लगाते हैं.?
Adhikansh kukarm to nashe ki aad mein hi hote hain,
Sochne samajhane ki kshmata bhi nashe se kai khote hain..
Agar nashe se hi tandarusti bahut log paate hain,
Phir kyon nahi apne bachchon ko wo nashe ki lat lagate hain.?
नशे की लत तो लगा लेते हो बस अपने में गुम हो जाते हो,
होश तुम्हे कुछ रहता नहीं और दुनिया को समझाते हो.।
न दे ऐसे खुमारी को बढ़ावा जिससे तू ही पछतायेगा,
तुझे देख के तेरा बच्चा भी नशा करना सीख जायेगा..।।
Nashe ki lat to laga lete ho bas apne mein gum ho jaate ho,
Hosh tumhe kuch rahta nahi aur duniya ko samjhate ho..
Na de aise khumari ko badhawa jisse tu hi pachhtayega,
Tujhe dekh ke tera bachcha bhi nasha karna seekh jayega..
खुशी तो अंदर है तेरे न ढूँढो उसे तुम पैमानों में,
दर्द-ए-दिल की दवा नहीं मिलती नशे की दुकानों में.।
अपनी फिक्र ना सही अपनो की तो परवाह करो,
अपने भविष्य के लिये होश संग निर्वाह करो..।।© RRKS.।।
Khushi to andar hai tere na dhoondho use tum paimano mein,
Dard-e-Dil ki dawa nahi milti nashe ki dukanon mein..
Apni fikr na sahi apno ki to parvaah karo,
Apne bhavishya ke liye hosh sang nirvaah karo..© RRKS.
Waawoo what a creation
ReplyDeleteThanks a lot dear..
DeleteThanks aapko nhi mujhe kehna Chahiye
ReplyDeleteQki aisi rachna prernadaai hai
Thanks Rakesh RK singh. "जिनगी बनाईं"
जग्गू के माई कहलीं, जवानी बेकार हो गई! हमरा जिनगी तो सुना,देखबा लाचार हो गई॥ भरलय अन्न घरवा में,बबुआ बेकार हो गई? रात-दिन सुबह-साम घरहीं,बढ़ ललकार हो गई॥ सुना हमरे घर मुर्गा दारू,कै इ व्यापार हो गई! जग्गू! पापा पापी का,बतकही गुलजार हो गई॥ दैव जानें काहे हमरो?,देखबा प्यार हो गई! जनता जनार्दन जड़ाऊ,जँगला निवार हो गई॥ जनाव जनार्दन जंगी जिद्दी,काहें भतार हो गइल। अँगना में दिनवें हमारे,सुना अनिहार हो गइल॥ केसे कहीं कैसे कहीं बचपनवें बेकार हो गई! हियरा सपनवाँ लरिकइयैं,जवनियाँ लचार हो गई॥ जियरा जे जबरी जाने,खबरी प्यार हो गई! जानी जो प्यारी पड़ोसन,फफ्ती अधिकार हो गई॥ लरिकन के संवारे बदे,बाबू जी के डाट पड़ि गई! अपने श्रृंगार खातिर,दैव-दैव कोही गई॥ छो़ड़ा चलीं सरजू तीरे,मन!माई को ही मनाईं। विलप-विलप सोई भरोस,भटकैया उहाँ भटकाईं। कुछ धरम-करम करके,शेष आपन जिनगी बनाईं॥
वाह सुखमंगल जी, बहुत खूब..।।
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